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Monday, November 8, 2010

चाँदीपूर

कल...जितनी भी बातें करो कम है...कल...जिसके लिये हम जिते हैं....कल जिसकी याद में रूख पर नक्श उभरने लगते हैं...तभी तो लहरों की शोर में श़ब भर जागा चाँद भी अधखुली पलकों से सवाल करता है...वो कौन सा कल था ...जिसे मैं याद कर रहा हूँ...
हाँ...चाँदीपूर वहाँ शुमार हो चुकी है...जिसे मैं कल याद करना चाहूँगा...
श़ब भर जिन किनारों को लहरें मूँह चिढ़ती रही...सुबह के साथ कहीं दूर चली गयीं...
सारा का सारा शोर एक खामोशी में तब्दील हो गया...
आसमानी कैनवास पर रंग वक्त-दर-वक्त बदलती रही....
और इन बदलती रंगो के साथ...जिंदगी की बिसात कुछ चाल यूँ चल पड़ी...
की ज़ह्न में उसकी तस्वीर घर कर गयी..






इन लम्हों को जिंदगी देने का कुछ काम दोस्तों ने भी किया...







चाँदीपूर....इसकी रोज़मर्रा की जिंदगी और उसका बाज़ारीकरण  देखते बनती थी...