कल...जितनी भी बातें करो कम है...कल...जिसके लिये हम जिते हैं....कल जिसकी याद में रूख पर नक्श उभरने लगते हैं...तभी तो लहरों की शोर में श़ब भर जागा चाँद भी अधखुली पलकों से सवाल करता है...वो कौन सा कल था ...जिसे मैं याद कर रहा हूँ...
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