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Monday, November 8, 2010

हाँ...चाँदीपूर वहाँ शुमार हो चुकी है...जिसे मैं कल याद करना चाहूँगा...
श़ब भर जिन किनारों को लहरें मूँह चिढ़ती रही...सुबह के साथ कहीं दूर चली गयीं...

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