आज का पुराना किला...कल का इन्द्रप्रस्थ...कितनी सदियों का सफ़र कैद किया है इसने...शेरशाह और हुमायूँ के जद्दोजहद भी...राजपुतों और मौर्यों की शानोशौकत भी...कभी जहाँ सुबह, घोड़ो की टापों से गुँजते थे... आज शैलानी आते हैं...उन्हे कैनवास पर कैद करने...कुछ बासिंदे अब भी जिंदगी गुजार रहे हैं इसके साये में...किला-ए-कुहना का तहखाना...कितना राज़दार होगा...मैंने कोशिश तो बहुत की...वो चिल्मन हटा दूँ...पर बेबाक ना रह सकी वो एक अजनबी के साथ...हया अब भी बाकी है...घराने की
Wednesday, October 12, 2011
Old Fort. Delhi
आज का पुराना किला...कल का इन्द्रप्रस्थ...कितनी सदियों का सफ़र कैद किया है इसने...शेरशाह और हुमायूँ के जद्दोजहद भी...राजपुतों और मौर्यों की शानोशौकत भी...कभी जहाँ सुबह, घोड़ो की टापों से गुँजते थे... आज शैलानी आते हैं...उन्हे कैनवास पर कैद करने...कुछ बासिंदे अब भी जिंदगी गुजार रहे हैं इसके साये में...किला-ए-कुहना का तहखाना...कितना राज़दार होगा...मैंने कोशिश तो बहुत की...वो चिल्मन हटा दूँ...पर बेबाक ना रह सकी वो एक अजनबी के साथ...हया अब भी बाकी है...घराने की